Friday, May 30, 2008
क्रम या क्रमभंग
आज स्वीकारा उसने
अपना प्रेम...
इस तरह खुल गए
कुछ और नये मोर्चे
मेरी लड़ाइयों के.
मेरा हृदय फिर से
तैयार होने लगा
नये आघातों के लिए.
मेरी नयी खुशियों को मिला
परिचित-सा वही
पुराना खौफ़...
अब मैं फिर घिरूँगा
फिर भिरूँगा
जर्जर समाज की
मृत कुलबुलाहटों से
जाति, धर्म और रक्त संबंधों के
द्दढ शिकंजों से
अब मैं लिख पाऊँगा
कुछ नयी कवितायें
कुछ नये गीत
लेकिन
हो तो कुछ ऐसा
अब फिर न हो
मेरी हार
फिर न रह जाऊँ
मैं अकेला,
अपने से बेज़ार!
Tuesday, May 27, 2008
कितने दूर कितने पास
तू इस तरह से मेरी ज़िन्दगी में शामिल है
जैसे दिल में धड़कन
धड़कन में संगीत
संगीत में सुर-ताल और लय
लय में गति
गति में जीवन
जीवन में सपने
और सपनों में ख्वाहिशें....
और ख्वाहिशें
ऐसी/जैसे
ठोकरों में ज़िन्दगी गुज़ारते
बेघरों को घर की,
एक अदद दर की.
सच ही तो है
शमशेर के शब्दों में__
तुम आओ, तो खुद घर मेरा आ जाएगा.
ख्वाहिशें
जैसे
शुरू होकर तुम से
तुम्हीं पर खत्म हो जाती है
और तुम
मुझसे कितनी दूर
कितनी बेपरवाह (शायद)!
________________
Tuesday, May 20, 2008
मैं और एक कविता
मैंने देखी
एक सुंदर कविता
और शुरू किया उसे पढ़ना
लगा जैसे आज तक
मुझे इसी भाव-बोध की तलाश थी.
धीरे-धीरे कविता कुतर्क हो गयी
फिर अहं....फिर ज़िद
.........फिर गुस्सा
..........झुंझलाहट
.............तनाव
और बिखराव......
आखिर कविता
चंद उलजलूल शब्दों की
तुकबंदी बनकर रह गयी.
मैंने कविता को
मन माफ़िक सुधारकर लिखना चाहा
और मेरी हर कोशिश ने
बार-बार सिद्ध किया
कि
मैं पाठक अयोग्य हूँ.
________________________ भास्कर
Saturday, May 10, 2008
Friday, May 9, 2008
प्रेम
प्रेम
यानी
रूप_रस_गंध_स्पर्श
प्रेम,
यानी
अधिकार
प्रेम,
यानी
त्याग_समर्पण
लेकिन सबसे बढकर
प्रेम,
यानी
दु:ख
यानी
संघर्ष अथक.
____________________डा. भास्कर
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