Wednesday, September 10, 2008

उन्हें गुस्सा बहुत आता है


वो
जिन्हें लगता है
कि वे कभी गलत नहीं होते
उन्हें गुस्सा बहुत आता है

गुस्सा बहुत आता है उन्हें
जिनके पास पद होता है
पद की ताकत होती है
ताकत का मद होता है
मद की मस्ती होती है
और होती है ज़िन्दगी
मस्त…..मस्त………..

उन्हें गुस्सा बहुत आता है
जो नचाना चाहते हैं सबको
अपनी ऊँगलियों के इशारे पर
सारे इतिहास और भविष्य को जो
अपने शौकिया आकर्षक कलमों की तरह
अपने कमीज़ की जेब में खोंसकर
दाँत निपोरे घूमते हैं व्यस्त-सा.

उन्हें गुस्सा बहुत आता है
खुद के ईश्वर न होने के
एहसास जागने पर
मुँह में गलगलाते तम्बाखू और पान के
छींटे उड़ने पर
अपने आत्ममुग्ध हस्ती के सम्मुख
न झुके सिरों पर

सुना है
हिटलर को भी
बहुत गुस्सा आता था.
जाने
'अल्बर्ट पिंटो' को
अब गुस्सा कब आयेगा?

Monday, September 1, 2008

एक मेरा साथ


तेजी से चढते-उतरते
तुम्हारी धड़कनों और सांसों के
बीच कहीं
फँसा हूँ मैं…
तुम्हारी बेचैनियों और घबराहटों में भी
कहीं
धँसा हूँ मैं…
मैं हूँ कि
गिराता जा रहा हूँ
तुम्हारी शाख के
हरे भरे पत्तों को भी
नयी कोंपलें और नये फूल
खिलाने की कोशिश में…
चाहता हूँ कि बनूँ
तुम्हारी कामयाबियों का पैग़ाम
एक ऐसी सीढ़ी
कि जिस पर चढ़
दुनिया की हर ऊँचाई तुम्हें
नीची लगे.
पर अक्सर जाने क्यों
तुम्हारे सामने
मेरी जुबाँ गुनहगार हो जाती है
और सिर
लज्जित…………!
चिट्ठाजगत