Wednesday, October 14, 2009

मार डालो मुझे!








आओ और आकर
मार डालो मुझे!
इस महान् देश में जीकर
कोई क्या करे
जहाँ महान् होने के लिए
जरूरी होता जा रहा है
धनवान होना,
और धनवान होने के लिए
चोर, डाकू, लूटेरा
साथ ही
दोगला, अवसरवादी और नाशवान होना...

जहाँ किसी पर विश्वास करने के लिए
और किसी के लिए विश्वसनीय होने की
एक मात्र कसौटी
सार्थकता नहीं
स्वार्थता हो गई हो...

जहाँ जाता हो खरीदा
यौवन और सौंदर्य
नग्नता के डिस्काउन्ट पर...

जहाँ ईमानदारी अभिशाप है और
वक्त आने पर गधा भी हो जाता बाप है...

जहाँ हर पल रखा जा रहा है गिरवी
इस तरह हमारी आज़ादी
कि हम हो जाते हैं मज़बूर
खरीदने के लिए अपनी गुलामी
अपने ही हाथों से...

जहाँ जिसके पास बहुत बड़ी कार है
वही सरकार है
प्रशासन और पुलिस जिसका मुख्तार है...

जहाँ रोटी के लिए भूखों का संघर्ष
अवैधानिक है, अश्लील है, आतंक है...

खुद ही बताओ
क्या करें!
चिट्ठाजगत