भूख से बिलखते
बच्चों के लिए
कभी दूध
कभी लोरी की तरह
तुम्हारी बातें
ऐसे में उन पर
बमवर्षक की भूमिका में
तुम्हारी खाँसी....
गले की मामूली ख़राश को
निमित्त बना
किसी बुश और ब्लेयर की तरह
अपने कुकृत्य को उचित ठहराती
तुम्हारी खाँसी
तुम्हारे पूरे शरीर को
झकझोर डालती है
किसी ईराक और अफगानिस्तान की मानिन्द....
किन्हीं कानों के
तरसते आरजूओं के लिए
तुम्हारी सुरीली-मीठी आवाज़
और
तुम्हारी खाँसी
उसे महज शोर में बदल देता
तालिबानी हमला....
खाँसी
एक अनैच्छिक क्रिया
यानी तुम्हारी सद्इच्छाओं पर
एक तानाशाही दमनचक्र
यानी
एक ऐसी बिमारी
कि जिसे
जनआंदोलनों के ग्लाइकोडिन की
सख्त ज़रूरत है.
Saturday, June 28, 2008
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1 comment:
चकरा देने वाली कविता है। खाँसी पर क्षोभ करूँ या विश्व-राजनीति पर, समझ नहीं आ रहा… पहले की तरह ही दमदार कविता है।
शुभम।
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