Thursday, April 30, 2009
मिथ्या आस्थाओं का सहारा
जीवन को पारिभाषित करने की असंख्य कोशिशों का
जो भी परिणाम हो
मैं जीवन के कसरत की चारदीवारी में कैद
अपने विवशता की गिड़गिड़ाहट को
पशु होने से बचाने के प्रयत्न में
नश्वर जगत के
मिथ्या आस्थाओं का सहारा लेता हूँ।
मैं संबंधों के कशमकश में
भावनाओं की भूमिका को
इन सहारों के सहारे
तिरस्कृत करता हूँ।
मैं गति, परिवर्तन और विकास की
द्वन्द्वात्मक वैचारिक संकल्पना को
इन्हीं सहारों के दम पर दरकिनार कर
इतराने के छद्म का
प्रदर्शन करता हूँ।
मैं "मैं" हूँ
एकमात्र "मैं"...!
Monday, April 27, 2009
आज की राजनीति पर
आज की राजनीति पर
मन नहीं कर रहा कुछ कहने का
मन नहीं कर रहा कुछ लिखने का
मन नहीं कर रहा कुछ सोचने का
अब तो
कुछ सुनने से भी बचता हूँ
कुछ देखने से भी बचता हूँ
कुछ करना तो बहुत दूर की बात है
अर्थात्
मैं नागरिक कर्तव्य की अवहेलना कर रहा हूँ
यानी
मैं भी "राजनीति" कर रहा हूँ।
मन नहीं कर रहा कुछ कहने का
मन नहीं कर रहा कुछ लिखने का
मन नहीं कर रहा कुछ सोचने का
अब तो
कुछ सुनने से भी बचता हूँ
कुछ देखने से भी बचता हूँ
कुछ करना तो बहुत दूर की बात है
अर्थात्
मैं नागरिक कर्तव्य की अवहेलना कर रहा हूँ
यानी
मैं भी "राजनीति" कर रहा हूँ।
Saturday, April 18, 2009
नींद मेरी जीवन कथा में
नींद मेरी जीवन कथा में
एक ऐसी नायिका की तरह है
जो विवाह से पूर्व प्रेयसी की
भाव-भंगिमाओं में जगाती रही
विवाहोपरांत स्त्री की
अहं-भावी भृकुटि से
प्रतिशोध के परिणाम के तहत
सोने नहीं देती है।
मैं अपने कलम के साथ
उसी के सहारे गुफ्तगू कर रहा हूँ
रात के चार बजे
पर नींद नायिका का
अपनी कामयाबी में मस्त
सुनहरे ख्वाबों में कहीं सो रही है।
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