Wednesday, March 16, 2022

हे मेरी तुम


चाँद

कभी पेड़ों से झिलमिल 

आँख मिचौली खेलता-सा 

कभी विराट आसमान में 

एकदम स्थिर -----

कुछ नाराज़-परेशां-दुखी-उदास 

कुछ गुस्से में...

सोचा,

तुम्हारे स्वभाव का असर 

जाने किस किस पर पड़ा है !!


दूर तक चली जाती 

फैली लहराती नदियों में

मैंने देखी 

अपनी छवि 

बिल्कुल वैसी ही थी 

जैसी तुम्हारी मुस्काती आँखों में 

अक्सर देखता हूँ 

खुद को...!!


दूर तक फैले हुए खेतों में 

धान के फसलों की हरियाली देखी

तुम्हारी याद आई 

कुछ यूँ ही अंदर तक 

हरा भरा हो जाता हूँ मैं

तुम्हें खुश देखकर ....!!


देखा हरे-भरे पेड़ों के पीछे 

छुपा-सा झाँकता

छोटे-छोटे घरों का एक गाँव 

लगा,

इसे तो अक्सर देखा करते हैं ,

मैं और तुम 

हमारी ख़्वाहिशों के 

रूपक में..!!    

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