Sunday, July 13, 2008

आज का समय


आजकल गुलामी या दासत्व के नए रूप हैं
जिन्हें अपनाया और झेला जाता है
अक्सर
आज़ादी और उन्नति के नाम पर.

कुछ भी करने की व्यक्तिगत चाहत दरअसल
कुछ भी स्वीकार करने की सामाजिक मज़बूरी है
भले वह चाहत के विरूद्ध ही क्यों न हो.

पहचान
तुलनात्मक अध्ययन का परिणाम हो गया है
कर्मगत उत्त्थान से परे
कापी और पेस्ट का अंजाम हो गया है.

किसी का मरना महत्त्वपूर्ण है
किसी का भयानक
किसी का दु:खदायी
किसी का कुछ भी नहीं
कुछ इत्यादि से भी परे.
चिंतन और विश्लेषण की यह प्रक्रिया
सनातन होती जा रही है
डायलेक्टिकल नहीं.

आदि-इत्यादि........!

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