Thursday, August 28, 2008
तुम्हारे लिए
तुम फक़त तुम हो जो
सकती है बरस
रौशनी बनकर कहर सी
तक़दीर पर उन अंधेरों के
जिसने मुझे स्याह किया.
मैं तो हमेशा से
रहा हूँ बेज़ार
हर किस्म के अंधेरों से
चाहता था रौशनी मैं भी
पर जाने क्यों
रही नहीं ख्वाहिश अब
रौशनी की मुझे.
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1 comment:
मैं तो हमेशा से
रहा हूँ बेज़ार
हर किस्म के अंधेरों से
चाहता था रौशनी मैं भी
पर जाने क्यों
रही नहीं ख्वाहिश अब
रौशनी की मुझे.
ldil ko chune waala likha hai
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