Tuesday, August 26, 2008

देखी अनदेखी


“चुप हो मुन्ना
न रो मुन्ना….”
कहा-
उसके थपथपाते हाथों ने
मूक बहते हुए आंसूओं ने
घुटकर.
फटे चीथड़ों में
अपने निरर्थक बालपन को कुचल
उस पर बैठी,
अचानक व्यस्क हुई यह बच्ची
गोद में
भूख से तड़पते छोटे भाई को
सम्भालती
जैसे
देश के भूखे भविष्य को
अपनी बेबसी में
पुचकारती
तसल्ली-सी दे रही हो

जाने कब तक रोयेंगे
ये दोनों.....!

No comments:

चिट्ठाजगत