Tuesday, July 22, 2008

एक मुर्दा नेता का बयान


मसली जा रही है
एक खूबसूरत कली.
मेरी संवेदना
उस कली की पीड़ा महसूस करा
मुझे क्रोध नहीं दिला पा रही,
बल्कि
उस बलात्कारी के बहाने
मेरी कल्पना मुझे
कर रही है आनन्दित
काश! मैं उसकी जगह होता.

मैं एक नेता हूँ
देश को बेहतर बनाने के बहाने
करता हूँ खूब बहसें
देता हूँ लम्बे-लम्बे
प्रभावशाली भाषण,
और महफिल से समेट लाता हूँ
तालियों की गड़गड़ाहट.

रातभर सोते हुए
उन तालियों की गूँज में
सोचता हूँ
अपने छोटे से मारूति को
मर्सडिज़ और फिरारे बनाने का
कोई आसान-सा तरीका
और लगता हूँ देखने
सपने...

मेरे सामने आता है एक आदमी
मैं उसे पहचानता हूँ
मैंने उसे अक्सर देखा है
ढेर सारी बोरियाँ एक ठेले पर
एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाते ले जाते,
और देखा है उसे हमेशा
अपने भाषणों के दौरान
वह सबसे पीछे खड़ा
सुन रहा होता था मुझे.
लेकिन
आज उसके हाथों में गँडासा क्यों है?
उसने बोलना शुरू किया वही सब
जो मैं अपनी भाषणों में कहा करता हूँ
और दूसरे ही पल
उसने किया वार,
मैं बच न सका.
मेरी नींद खुली तो मेरी आँखें बंद थी,
लहुलुहान
मैंने खुद को मुर्दा पाया.

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