Subscribe to:
Post Comments (Atom)
नज़दीकियों में रंजिश है
दूरी तो कतई बर्दाश्त नहीं
ऐसा क्यों कर मुमकिन हो
कि पास रहें पर साथ नहीं.
* * * * * * *
दर्द
ये तुझसे कैसा रिश्ता है मेरा
लौट ही आता हूँ मैं
घड़ी दो घड़ी के बाद.
* * * * * *
लुटा लुटा सा जीता हूँ
हर लम्हा ज़िन्दगी का
तुम मेरी ज़ागीर हो
क्या करूँ तुम्हारा मैं.
* * * * * *
1 comment:
प्रेम क्या मात्र यही सब है? आशा नहीं, उन्नति नहीं, पार लोक ले जाने का साधन नहीं है? जिस प्रेम को मैं जानता हूँ वह यह सब भी है और वह सब भी जो आप कह रहे हैं… हालाँकि मेरी प्रिय प्रेमकविता आजतक यह है:
कमज़ोरियाँ
तुम्हरी कोई नहीं थीं
मेरी थी एक
मैं करता था प्यार।
शुभम्।
Post a Comment