Friday, May 9, 2008

प्रेम


प्रेम
यानी
रूप_रस_गंध_स्पर्श
प्रेम,
यानी
अधिकार
प्रेम,
यानी
त्याग_समर्पण
लेकिन सबसे बढकर
प्रेम,
यानी
दु:ख
यानी
संघर्ष अथक.

____________________डा. भास्कर

1 comment:

महेन said...

प्रेम क्या मात्र यही सब है? आशा नहीं, उन्नति नहीं, पार लोक ले जाने का साधन नहीं है? जिस प्रेम को मैं जानता हूँ वह यह सब भी है और वह सब भी जो आप कह रहे हैं… हालाँकि मेरी प्रिय प्रेमकविता आजतक यह है:
कमज़ोरियाँ
तुम्हरी कोई नहीं थीं
मेरी थी एक
मैं करता था प्यार।

शुभम्।

चिट्ठाजगत