हमारी संगति में
संगीत बना रहे।
चुनमुन चिड़ैये का
वह छोटा सा घोंसला
कितना अच्छा हो कि
सजा रहे
पेड़ सुखने के बाद भी
और भला
पेड़ भी सूखे क्यों?
जब हम उसे पानी से नहीं
अमृत से सींचते हैं
अमृत वह विश्वास है
जिसे हमने हासिल किया है
रोज़मर्रा के सुख दुख में
इस तरह की ज़रूरत नहीं पड़ती कभी
“सॉरी” या “थैंक्स” के
बनावटी मकड़जाल की।
तुम मेरी नज़र में
उस पेड़ की तरह हो
जिसके पत्तों में खूब हरापन है
जिसके फूलों में रंगत है खूशबू है
और फल की संभावना भी
जिसने कस के जकड़ लिया है
उस ज़मीन को
जिसमें उसकी जड़ें फैली है
और सबसे बढ़कर
जिसके पास एक मुकम्मल
मजबूत तना है
जो उसका अपना है।
Sunday, August 29, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
सुंदर बहुत सुंदर रचना है
शुभकामनाएं ।
Post a Comment