कुछ चेहरों को सामने से नहीं
बगल से देखो
कुछ के नज़दीक मत जाओ
उन्हें दूर से देखो
कुछ चेहरों को देखो सिर्फ़
'डिजीटल डिवाइसेज़'(अंकीय उपकरणों) में
वह ज़्यादा सुंदर लगेगा
सौंदर्य भी बदल लेता है
अपनी उपस्थिति का अंदाज़
प्रदर्शन की भंगिमा
या
उसे मजबूर कर दिया जाता है
ऐसा होने को
'वर्चुअल रिअलिटी' (अवास्तविक यथार्थ) द्वारा !!!
Monday, December 6, 2010
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3 comments:
बहुत खुबसूरत कविता रची है आपने । खुबसूरत को बयां करने का अन्दाज निराला है
शुक्रिया कौशल्या जी
कितनी सही बात 😊
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