Monday, July 28, 2008

रूठ ना जाने का प्रेमालाप


जब से आयी हो
वो जो नहीं था
जिसकी कमी का अहसास भी नहीं था
उसे आँखों में समेटे
दिल में बसाये
खुद पे मग़रूर कुछ यूँ
मदहोश सा फिर रहा हूँ
जैसे
जन्मों-जन्मों की ख्वाहिश
मेरी हथेलियों पर
मेरी बदकिस्मती को धता बता
साकार हो गई हो
जैसे
हो गई हो पूरी
आरजू तमाम
तड़प को मिल गया हो
स्थायी-विराम
जैसे पा लिया हो
सदियों के तप के बाद
वांछित वर का दान.

ये मेरी गफ़लत सही
पर अब यही नियति है
मेरा भविष्य
अब यही है मेरे जीवन का आधार और अधिरचना
रास्ता भी यही, मंजिल भी यही
प्रक्रिया भी यही, परिणति भी यही
तुम बस यूँ ही
मेरा रहना
साथ मेरे
पास मेरे सदैव
रूठ ना जाना
दूर ना जाना!

Sunday, July 27, 2008

राम की बगिया


रमुआ चौंक उठा था
जब मैंने उसे राम पुकारा,
वह लगा सोचने
राम से रमुआ होने का कारण.
और पहली बार शिकायत की
उसने खुद से
अपने रमुआ होने की.

रमुआ शहर आया.
रिक्शे चलाए, ठेला खींचा,
मेहनत की, मज़दूरी की,
फूटपाथ पर
कभी-कभी भूखे सोकर
पैसे बचाए
किसी होली में लौटा गाँव.

शहर से गाँव लौटते ही
रमुआ को राम पुकारा गया.
उसे याद आया
रमुआ से राम तक का ये सफ़र.
जिसे उसने तय किया था
अनेक गालीवाचक
नामों की गलियों से.

आज उसे शिकायत है
यहाँ अपने राम होने का
आज वह फिर
सबका रमुआ होना चाहता है
लेकिन उसे हैरानी है
आज यहाँ रमुआ उजाड़ है
और राम की बगिया लहरा रही है.

Thursday, July 24, 2008

प्रतीक

मैंने

पानी से कहा बहो

उसने बहने से इंकार कर दिया

और

बरस पड़ा मुझपर

तीरों की बौछार बनकर!

Tuesday, July 22, 2008

एक मुर्दा नेता का बयान


मसली जा रही है
एक खूबसूरत कली.
मेरी संवेदना
उस कली की पीड़ा महसूस करा
मुझे क्रोध नहीं दिला पा रही,
बल्कि
उस बलात्कारी के बहाने
मेरी कल्पना मुझे
कर रही है आनन्दित
काश! मैं उसकी जगह होता.

मैं एक नेता हूँ
देश को बेहतर बनाने के बहाने
करता हूँ खूब बहसें
देता हूँ लम्बे-लम्बे
प्रभावशाली भाषण,
और महफिल से समेट लाता हूँ
तालियों की गड़गड़ाहट.

रातभर सोते हुए
उन तालियों की गूँज में
सोचता हूँ
अपने छोटे से मारूति को
मर्सडिज़ और फिरारे बनाने का
कोई आसान-सा तरीका
और लगता हूँ देखने
सपने...

मेरे सामने आता है एक आदमी
मैं उसे पहचानता हूँ
मैंने उसे अक्सर देखा है
ढेर सारी बोरियाँ एक ठेले पर
एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाते ले जाते,
और देखा है उसे हमेशा
अपने भाषणों के दौरान
वह सबसे पीछे खड़ा
सुन रहा होता था मुझे.
लेकिन
आज उसके हाथों में गँडासा क्यों है?
उसने बोलना शुरू किया वही सब
जो मैं अपनी भाषणों में कहा करता हूँ
और दूसरे ही पल
उसने किया वार,
मैं बच न सका.
मेरी नींद खुली तो मेरी आँखें बंद थी,
लहुलुहान
मैंने खुद को मुर्दा पाया.

Wednesday, July 16, 2008

गुप्त द्वार पर दस्तक

कहा जाता है कि
जिज्ञासा की पूर्ति रहस्य का अंत है,
राग और द्वेष मुक्त व्यक्ति
व्यक्ति नहीं, संत है.
लेकिन
रहस्य को बनाए रखकर
जिज्ञासा जगाए रखना
आज का धंधा है
पैसे का ही राग द्वेष
जीवन का फंदा है.

Sunday, July 13, 2008

आज का समय


आजकल गुलामी या दासत्व के नए रूप हैं
जिन्हें अपनाया और झेला जाता है
अक्सर
आज़ादी और उन्नति के नाम पर.

कुछ भी करने की व्यक्तिगत चाहत दरअसल
कुछ भी स्वीकार करने की सामाजिक मज़बूरी है
भले वह चाहत के विरूद्ध ही क्यों न हो.

पहचान
तुलनात्मक अध्ययन का परिणाम हो गया है
कर्मगत उत्त्थान से परे
कापी और पेस्ट का अंजाम हो गया है.

किसी का मरना महत्त्वपूर्ण है
किसी का भयानक
किसी का दु:खदायी
किसी का कुछ भी नहीं
कुछ इत्यादि से भी परे.
चिंतन और विश्लेषण की यह प्रक्रिया
सनातन होती जा रही है
डायलेक्टिकल नहीं.

आदि-इत्यादि........!

Tuesday, July 8, 2008

जवाब दो

Thursday, July 3, 2008

ये कैसा मैं हूँ


जुड़वा बच्चों की ये माँ
जब देखती है मुँह
अपने नवजात लाड़लों की
भूल जाती है अपने पेट का मरोड़
सूखे छाती की पीड़ा
मुसीबतों के थपेड़ों में घिसटती ज़िन्दगी
और अंकुरित हो जाती है
सुखद भविष्य की आशायें.
इस माँ को बेचना पड़ा अपना एक लाल
केवल दस रूपये में
भूख से मरते नहीं देख सकती थी उसे.
लेकिन
कुछ ही दिनों बाद
उसे देखना ही पड़ा
मरना अपने दूसरे लाल का
भूख से तड़पकर
तड़प-तड़प कर....
उसी दिन सभी अखबारों में ख़बर छपी थी
भारत के विदेशी मुद्राओं का भंडार
सौ अरब डालर तक पहुँचा.

मियाँ कह रहा था-'बस एक महीने और
फिर हमारी मोहब्बत आयेगी हमारे बीच
लड़की होगी बिल्कुल तुम्हारी तरह..'
फिर लगे दोनों सपने बुनने
लड़की के कैरियर से लेकर
निकाह-ससुराल तक.
अगले दिन
घर में घुस आया
शोर, चीखें और गुहारों के बीच
तलवारों और त्रिशूलों का काफ़िला
एक तलवार ने मियाँ की गर्दन उड़ा दी
दूसरे ने बेज्ज़त बीवी का पेट फाड़ दिया
'मोहब्बत' खून के बलबलों के साथ
बाहर आ गिरी
एक त्रिशूल उसमें आ धँसा
और उसे उठा लिया हवा में
और फिर हवा में गूँज उठी नाद
नाद जय श्री राम की
नाद हर हर महादेव की.
इन्हीं दिनों प्रधानमंत्री भारत के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिकता पर
विदेशों में गर्व बखान रहे थे.

छ: साल के आफ़ताब के पिता को
सद्दाम के सैनिकों ने मार डाला
कहा 'कम्युनिस्ट' था.
आठ साल का आफ़ताब अब
अपनी बेबा अम्मी के लिए
सहारा है, सपना भी
वर्तमान भी और भविष्य भी.
इराक पर अमेरिका ने हमला किया
कहते हैं, आफ़ताब के ठीक सिर पर
मिसाईल गिरी जब वह सड़क पर
अख़बार बेच रहा था.
अगले दिन सी-एन-एन पर जार्ज बुश कह रहे थे
'इट्स ऑल फॉर जस्टिस'
(ये सब न्याय के लिए है.)

ऐसे सैकड़ों-हजारों दास्तान
मैं जानता हूँ
जो हमारे समय की सच्चाई है
फिर भी मेरे अपने
मैं चाहता हूँ
कि पूरी हो सबकी हर ख्वाहिश
कि प्राप्त कर सके अपना इच्छित प्राप्य
कि जी सकें वैसे जैसा वे चाहें
कि उनके उज्ज्वल जीवन की फलक में
न घुस पाए
समय की काली रेत.....
हर उस दिन
जिस दिन उन्हें 'विश' करना होता है.
ये कैसा मैं हूँ
कैसी मेरी चाहत!
चिट्ठाजगत