Friday, September 11, 2009

भवितव्य अतीत



याद आता है
अक्सर..
तेज बारिश के झोंको में
उम्मीद से छोटी
और
औक़ात से मामूली
छतरी के नीचे
उसे मजबूती से थामे
हमारा
भींगना......भींगते जाना
एक दूसरे की आँखों में
लगभग अपलक देखते हुए।

गुज़रे हुए सुखद क्षणों को
एक स्थिति
की तरह नहीं
मैं इसे
प्रतीक
की तरह
याद करना चाहता हूँ
ताकि दिख सके
हमारे भावी आदर्श जीवन की
सम्भावनाशील परिकल्पना....!

Thursday, September 3, 2009

तुम अमूल्य हो


जिसे ढूँढता रहा
सागर की गहराइयों में,
पर्वतों की गुफाओं में,
ग्रहों में, नक्षत्रों में,
और न जाने कहाँ-कहाँ.
उसे देखता हूँ मैं
तुम्हारे आँखों में सजे
निश्छल सौन्दर्य के
अविकल भावों में.
जिसमें बसा है वह
जो मिलता है,
जुते ज़मीन पर गिरे
चार बूँद पानी में,
नवजात बच्चों के
मस्तभरी छलाँगों में,
धड़कनों और
ज़ुबानों को रोककर,
छलकनें को उतावले
आँसूओं में...
* तुम अमूल्य हो *
चिट्ठाजगत