Thursday, September 3, 2009
तुम अमूल्य हो
जिसे ढूँढता रहा
सागर की गहराइयों में,
पर्वतों की गुफाओं में,
ग्रहों में, नक्षत्रों में,
और न जाने कहाँ-कहाँ.
उसे देखता हूँ मैं
तुम्हारे आँखों में सजे
निश्छल सौन्दर्य के
अविकल भावों में.
जिसमें बसा है वह
जो मिलता है,
जुते ज़मीन पर गिरे
चार बूँद पानी में,
नवजात बच्चों के
मस्तभरी छलाँगों में,
धड़कनों और
ज़ुबानों को रोककर,
छलकनें को उतावले
आँसूओं में...
* तुम अमूल्य हो *
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1 comment:
वाह !
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