Friday, March 13, 2009
फेरे सात (लघुकथा)
कभी बड़े उमंग और उल्लास में पूरे हुए थे फेरे सात. पर आज वह पास तो है लेकिन साथ नहीं. पास भी इसलिए है क्योंकि पास रहने को विवश किया है वस्तुओं ने, पदार्थों ने, सौन्दर्य प्रसाधनों ने, विलासिता के उपकरणों ने. और इन्हीं चीजों ने ही शायद उसके साथ नहीं रहने दिया. इन्हीं से उत्पन्न "मैं" से कल ऐसा भी होगा कि पास भी रहने नहीं देगा. इसके बावजूद जाने क्यों मैं भी कष्टों से परे सजीव रह रहा हूँ और सजीव ही रहूँगा. जाने क्यों?
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1 comment:
bazar jo ghus aya hai ghar me.
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