Friday, May 8, 2009

इस तरह के “वे”


वे पढ़ाते हैं
और पढ़ाने की कमाई खाते हैं
लेकिन नहीं चाहते पढ़ाना
पढ़ना तो बिल्कुल नहीं चाहते
कमाई चाहते हैं
कमाने का यह माध्यम तो
बहुत ज्यादा पसंद है।

उन्हें कुछ साधनों से बहुत लगाव है
लक्ज़री होने तक
लेकिन
साधना से हिकारत है
उसके तो इर्द गिर्द भी नहीं होते।
इस तरह के “वे” भले सब नहीं
पर
न जाने कितने हैं….!

4 comments:

रवीन्द्र दास said...

kuchh kahna chahta hun par kya kahun?

भास्कर रौशन said...

जो चाहते हैं वही कहिए। परहेज से बचें।

RAJ SINH said...

सटीक !
इस पर पता नहीं अलग क्या कहा जा सकता है ? यही सच्चाई है !

डिम्पल मल्होत्रा said...

boht sahi kaha apne....

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