
दिन दूनी रात चौगुनी
तरक्की की लालसा में
आम आदमी
भीड़ में बिगड़ती, खोती पहचान
बचाने बनाने की लालसा में
आम आदमी
जीवन में हर घड़ी
सूअर की तरह मरता है
साथियों के अभाव में।
आम आदमी में
ज्ञान का अभाव नहीं
मूल्य भी अपार है
लेकिन इसका नपुंसक हो जाना ही
आज आम आदमी की पहचान है।
1 comment:
अच्छी भावना है…लिखते रहिये…शुभकामनायें
आपको अनुमति की क्या ज़रूरत है भाई…
Post a Comment